Saturday, May 29, 2010
वोट
जब वह उस गांव से लौट रहा था, तो उसे बड़ा गर्व सा हो रहा था। चुनाव का मौसम था। सामने विधान सभा के लिए मतदान होना था। चुनाव में प्रचार की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। तमाम राजनैतिक दल के लोग अपने सामर्थ के हिसाब से चुनाव प्रचार में पूरे तामझाम के साथ लगे थे। जिन नेतओं ने कभी गांवो की तरफ रूख करना कभी मुनासिब न समझा था। गांवों की बदहाली एवं गरीबी से जिन्हें चिढ़ थी, वही लोग आज बड़ी-बड़ी गाड़ियों को सजाकर “गरीब-रथ” या “परिवर्त्तन-रथ” आदि बनाकर गांव के घूल-भरे कच्चे रास्तों में घूम रहे थे।
वोट जो लेना था। वह भी इसी राजनीति के चक्कर में आ चुका था। हुआ ऐसा था कि काम तो वह दुसरा करता था, पर अचानक ऐसी परिस्थिति आ गई कि उसे चुनाव में खड़ा होना पड़ा। उसके परिवार में एक बहुत नामी एवं बड़े नेता थे, जिनका अचानक निधन हो गया था। तो पार्टी ने उसे टिकट दे दिया था।
राजनीति में परिवारवाद अब चल निकला है। दक्षिणपंथी विचारधारा, वामपंथी विचारधारा की बातें सुनते थे। राजनीति में पहले पूँजीवाद, समाजवाद, मार्क्स, लेनीनवाद, माओवाद, गाँधावाद, मनुवाल आदि-आदि शब्द सुनते थे। फिर ब्राह्मणवाद जातिवाद आदि राजनीति में प्रजलित हुए। राजनीतिज्ञ भी पहला काम जो करते हैं वे हैं वादों के सहारे वोट माँगना। जनता भी नेताओं से उनके वादों को ही सुनना पसंद करती है। हाँ अब एक नयावाद आ गया है, राजनीति में वो है परिवारवाद। परिवारवाद आजकल खूब चल निकला है। सिर्फ राजनीति में ही नहीं धंधो, प्रोफेशनों में भी परिवारवाद खूब फूल रहा है।
डाक्टर के बेटे आसानी से डाक्टर बन जाते हैं। वकील के बेटे को बैठे-बैठाए मुअक्किल मिल जाते हैं। यहाँ तक कि इंजिनीयरों के बेटे भी इंजिनीयर बनना पसंद करते है। अभिनेताओं के बेटे अभिनेता बन रहे है। तो राजनीतिज्ञा के बेटों को भी जनता अब स्वीकार करने लगी है। परिवारवाद अब ग्राह्य है। इसकी अब अनुकुल आलोचना होती है, प्रतिकुल नहीं। अब लोग कहते हैं कि विरासत भी कोई चीज है। गुण तो विरासत से आते है।
हाँ तो उसे इस बात का संतोष था कि उस गांव के लोगों ने बड़े खामोश होकर उसकी बातों को सुना था। जाहिर है कि उसकी बातों में दम रहा होगा और गांव के लोगों को उसकी दलीलें अच्छी लगी होगी। तभी तो सभी गंभीर थे और चुप थे। नाराज होते तो उसका विरोध भी कर सकते थे। वैसे उसे डर भी था कि कहीं उसकी बात का वे बुरा न मान जाएँ। पर वैसा कुछ नहीं हुआ था।
बात यह है कि जब वह उस गांव में चुनाव प्रचार के दौरान पहुँचा, तो शाम हो रही थी। वह गांव उसके पैतृक गांव के पास ही पड़ता था। लिहाजा उस गांव के बहुत सारे लोग उसे न सिर्फ पहचानते ही थे, बल्कि व्यक्तिगत रूप से जानते भी थे। कई तो उसके बचपन एवं जवानी के साथी भी रह चुके थे। यह और बात है कि उसे वहाँ से बाहर चला जाना पड़ा था और वह बहुत आगे निकल आया था और वे लोग वहीं के वहीं थे।
जब वह वहाँ पहुँचा था तो पाया कि गांव के बहुत सारे लोग एक जगह बैठे थे और कुछ खा-पी रहे थे। लग रहा था कि कोई समारोह (फन्कसन) था। पर नजदीक जाने पर पता चला कि वैसी कोई बात नहीं थी और वहोँ इकठ्ठे लोग शराब पी रहे थे और शराब के साथ “चखना” चख रहे थे। रोज ही शाम को वैसी महफिलें लगती रही है। पता चला था कि उस गांव में अवैध शराब लाई जाती थी और बड़ा अच्छा कारोबार हो जाता था। इसीलिए गांव के लोगों को सस्ते में दारू मिल जाती थी। फूर्सत के समय यही शगल बन जाता था। अब गांव के लोगों के पास इतना काम भी नहीं था कि फूर्सत नहीं मिलती। खेती-किसानी का काम कम हो गया था। आखिर कोई इंतजाम रहे, तो खेती हो। खेत सूखे से ग्रस्त हो जाते। सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं। जैसे-तैसे खेती होती। गॉव के जो पढ़े-लिखे नौजवान थे, अब गाँव मे रहना नहीं चाहते। शहर की तरफ रोजगार की तलाश में भाग जाते। उस दिन तो कुछ विशेष ही बात थी, वहाँ जाने पर उसे पता चला था। गांव के सभी लोग वहाँ इकट्ठा हो गये थे, जब उसका काफिला वहाँ पहुँचा था। अच्छी खासी भीड़ इकट्ठी हो गई थी। उसे देख वह बहुत ही उत्साहित हो उठा था। उसे लग रहा था कि गांव के लोगों के दिल में उसके प्रति बड़ा आदर-भाव है, तभी तो सभी इकट्ठे हो गये थे।
वहीं पर एक आदमी ने उसके कान में कहा था कि परसों ही वहाँ दूसरे प्रत्याशी श्री तिवारी जी पहुँचे थे। पूरी शाम गांव में रहे थे। उत वक्त भी लोग वहाँ इकट्ठे होकर शराब ही पी रहे थे। श्री तिवारी वहाँ गांव वालो के साथ चटाई बिछाकर बैठ गये थे। अपने एक सर्मथक को आनन-फानन में शराब की दुकान की तरफ दौड़ा दिया था, शराब की कई बोतलें लाई गई थी और खस्सी का मांस भी। वहीं भूनने का इंतजाम भी किया गया था। सो तिवारी जी ने भी गांव वालों को छक के शराब पीलाया। पीलाया ही नहीं, स्वयं भी ग्लास लेकर बैठे थे और उनके साथ चुस्कियाँ ली थी।
उसे पता चला कि श्री तिवारी के इस व्यवहार से गांववाले बहुत प्रभावित हो गये थे। जोर-जोर से तिवारी जी के जिंदाबाद के नारे लगाने लगे थे। और इससे पहले कि तिवारी जी भाषण करते गांव के लोगों ने वादा कर दिया था कि वे अपना वोट तिवारी जी को ही देंगे।
वाह! क्या नेता है ? ऐसा ही नेता होना चाहिए? जो आम जनता के साथ एकाकार हो सके। उसकी भावनाओं के साथ तालमेल बना सके। “वाह इतना बड़ा आदमी होते हुए भी हमारे साथ बैठ कर शराब पी” हमारे रंग में रंग गये श्री तिवारी ने मौके का फायदा उठाते हुए भाषण झाड़ा था कि चारों तरफ गरीबी है, भूखमरी है, आम आदमी के दु:ख दर्द को समझने वाला नहीं है। वे ही सिर्फ इस बात को समझते हैं। अगर शाम के वक्त ज्यादे गलत करते हैं तो कोई हर्ज नहीं है। अरे वर्षो से लोग ऐसा करते आए हैं। गांव में गुलामी करने वाले लोग आज तो सही माने में आजाद हुए हैं कि जैसा चाहें कर सके, वरना पहले किसी की क्या मजाल थी जो इतनी आजादी मिल पाती। श्री तिवारी ने जाते-जाते गांव में लाइसेंसी शराब की दूकान खोलवाने का वादा भी कर डाला था। ताकि लोग बिना डर के मौज कर सकें। वहाँ के लोग तिवारी जी की घोषणा से गद्-गद् हो उठे थे।
उसकी मीटिंग में भी उतने ही लोग उपस्थित थे जितने कि श्री तिवारी के। अत: उसके उत्साह में कोई कमी नहीं आई। वह सोचने लगा कि यह गांव तो उसका अपना है। सभी जाने पहचाने हैं। तिवारी तो इस क्षेत्र के हैं भी नहीं।
उसने बड़ी हिम्मत एवं उत्साह से अपना व्यक्तव्य रखा था। कहा था कि आज जो देश में गरीबी एवं बदहाली है, कानून-व्यवस्था में गिरावट है उसका एक प्रमुख कारण शराबखोरी है। अपने बाल-बच्चों को हमें शिक्षा देनी चाहिए एवं शराब नहीं पीना चाहिए। शराबखोरी से परिवार बर्बाद होता है। एक तो हमारी आर्थिक हालत दिन बदिन गिर रही है, ऊपर से अगर हम शराब में पैसा बर्बाद करते हैं तो हम अपने बच्चों की शिक्षा पर उचित ध्यान नहीं दे पाते हैं। इससे स्वास्थ्य खराब होता है।
उन्होनें शराब में जितनी बुराइयाँ शराब में हो सकती थी, गिना डाली। तथा गांव वालों को समझाने के अंदाज में शराबखोरी को त्यागने का इपदेश दे डाला। गांववालों ने बड़े धैर्य पूर्वक उनका भाषण सुना था। सभी ने उनके व्यक्तव्य को सराहा था कि बहुत अच्छी-अच्छी बातें बोलते हैं। पर उनके गोंव से निकल आने के बाद वहाँ गांव वाले जैसे तंदा से जगे थे और पुरानी हालत में वापस आ गये थे। सभी कहने लगे थे कि “बड़ा आया उपदेश देने वाला, हम अपने पैसे की पीते हैं, तो उसके बाप का क्या जाता है” बड़ा नेता बनता फिरता है, अरे हम एक साथ एक ही गलियों मे गिल्ली-डंडा खेले हैं, पर देखो! हमारे साथ बैठकर हमारे साथ शरीक नहीं हुआ। अपने को बड़ा ऊँचा एवं पवित्र समझता है। इससे तो अच्छा तिवारी जी हैं जो हमारे साथ जमीन पर बैठ गये और दारू तक पी, हमारा मन रखने के लिए। जो अभी से हमसे इतनी दूरी बनाके रखा तो आगे चुनाव जित जाने के बाद क्या करेगा। “बड़ा आदमी है, तो अपने घर का है।“
लोगों ने शराब पी ही रखी थी। किसी ने यहाँ तक कह दिया “साला अपने आप को क्या समझता है, आया था नसीहत देने। सब पता चल जायेगा।“ गांववालों को उसकी नसीहत अच्छी नहीं लगी थी। वे शायद उसके सामने किसी प्रकार की हीन-भावना से ग्रस्त हो गये थे। उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि लोगों ने उसकी बात का बुरा माना था।
चुनाव के खत्म होने पर मतगणना का दिन आया। उसने बड़ी उत्सुकता से उस गांव में पड़े मतो के परिणाम का इन्तजार किया था। उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उस गांव के तमाम वोट श्री तिवारी को मिले थे। उसे एक भी मत नहीं मिला था।
Sunday, March 28, 2010
अध्याय - 1
झारखण्ड़ क्षेत्र का प्रशासन अपने आप में अनूठा था। अंग्रेजी राज से पूर्व छोटानागपूर पठार अनेक बड़े सामन्तो के कब्जे में था। संथाल परगना का पहाड़ियाँ जनजाति के कब्जे में था। इसके मैदानी क्षेत्र और घाटी में घटवार या घटवाल तथा जमींदारों का नियंत्रण था। मुगल-सम्राट के साथ साधारण निष्ठा थी।
यहाँ पर मुसलमान शासकों ने पूर्ण रूपेण कब्जा नहीं किया था। झारखण्ड़ के निवासी आदिम जनजाति, प्रिमिटिव ट्राइव के लोग थे, जिनका अपना कानून था। अपने रस्मो-रिवाज थे। अपना रीति-रिवाज था। सम्पति के उत्तराधिकार के एवं हस्तांतरण के अपने नियम थे। वस्तुतः यहाँ के उस समय के निवासी हिन्दुत्व एवं ईस्लाम दोनों से अप्रभावित थे। वे प्रकृति पूजक थे।
मुगलकाल के बाद सबसे ज्यादा प्रभाव ब्रिटिस शासन का इस क्षेत्र पर पड़ा। 1765 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कम्पनी को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा की दिवानी स्वीकृति की गई थी। और इसी के साथ इस क्षेत्र में ब्रिटिश प्रशासन का अध्याय शुरू हुआ। दीवानी प्राप्त करने और सेवाएँ प्राप्त करने का अधिकार मिल गया। इस अधिकार का उपयोग कम्पनी ने अनुशासनहीन सामंतो, जमींदारो, मुखीयों के खिलाफ किया जो राजस्व या कर देने में अवहेलना या विलम्ब करते थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी इन लोगों के वापसी झगड़े में हस्तक्षेप करती थी। इस अधिकार के तहत जनजातियों के विद्रोह को कुचलने के लिए सेना का उपयोग कम्पनी किया करती थी । 1776 में स्थाई बन्दोबस्त लागू करने के साथ कम्पनी का दामन चक्र पक्का हो गया।
1788 में ईस्ट इंडिया कम्पनी की शक्ति तम्राट को हस्तांतरित हो गई। 1765 के बाद से करीब एक सौ वर्षो से भी अधिक समय तक इन क्षेत्रो में जनजातिय विद्रोह एवं आन्दोलन का समय रहा। ब्रिटिश प्रशासनिक प्रत्युत्तर पर ये विद्रोह हुए। इनमें महत्वपूर्ण है मलेर विद्रोह (1772), तिलका माँझी विद्रोह (1784), तमाड़ विद्रोह (1798), कोल इन्सरक्सन (1820), हो विद्रोह (1832) ग्रेट कोल विद्रोह आदि।
सम्राट के पास शक्ति आ जाने के बाद जनजातीय क्षेत्र के प्रशासन में अनेक परिणामी परिवर्त्तन किए गये थे।
मीलिटरी एक्शन के जरीए जनजातीय विद्रोहों एवं अन्य आन्दोलन को कुचलने का व्यापक इन्तजाम किया गया था। तीन तरफा कार्यवाही की गई, ग्राउंड प्राशासन को मजबूत करना, जनजातीयों की शिकायतों को दूर करके उन्हे शांत करना जो उस समय मुख्यतया ठेकेदारों, सामन्तो, जागीरदारों, महाजनों, व्यापारियों आदि के खिलाफ हुआ करती थी।
अधिकांश शिकायतों का केन्द्र-बिन्दु जमीन और वनों पर उनका अधिकार एवं कभी-कभी उनकी महिलाओं का शोषण होता था।
झारखण्ड क्षेत्र एक जनजातीय क्षेत्र रहा था। अधिकांश जनसंख्या जनजाति थी। ब्रिटिश प्रशासन ने अठारहवीं सदी के अन्त से ही संवैधानिक प्रक्रिया प्रारम्भ कर दिया था। जिसके अर्न्तगत प्रशासन को भारतीयों को सहयोजित करने और धीरे-धीरे उन्हे उत्तरदायित्व सौपना था। फिर भी झारखण्ड़ जैसे जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन इस प्रक्रिया से अछूता रह गया था।
ब्रिटिश शासन ने भारतवर्ष में अपनी सत्ता चलाने के लिए एवं अपने कानूनों को लागू करने के लिए सर्वेक्षण के काम किए। जमीन का सर्वे तथा जातीय सर्वे भी किया। भारतवर्ष में निवास करने वाली जातियों का वर्गीकरण किया एवं भू-भाग का भी वर्गीकरण किया। ब्रिटिश शासन ने दो प्रकार के क्षेत्र पाये, एक तो भारत का मैदानी-समतल क्षेत्र तथा दूसरा पहाड़ी क्षेत्र। मैदानी लोगों के जीवन एवं दृष्टीकोणों में बहुत बड़ा अन्तर एवं विरोधावास पाया।
इस अन्तर एवं विरोधावास का कारण यह था कि पहाड़ी क्षेत्र में भारतवर्ष की जनजातियाँ वास करती थी। जिनका रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि अलग थे। ब्रिटिश सरकार का उद्देष्य विधान मंड़लो के सांविधानिक प्राधिकार को इन क्षेत्रों में न्यायिक एवं प्रशासनिक पद्धति को सरल तथा लचीली रखना सुनिश्चित करना चाहते थे।
Thursday, March 25, 2010
परिवर्त्तन
अध्याय - 1
"झारखण्ड़" शब्द का शाब्दिक अर्थ झाड़-जंगल क्षेत्र से घिरा हुआ क्षेत्र है, और बिहार के छोटानागपुर एवं संथाल परगना कमीशनरी, बंगाल, बिहार तथा मध्य प्रदेश के राज्यों के समीपवर्त्ती क्षेत्र जो झाड़-जंगल से घिरे है, उस क्षेत्र को झारखण्ड़ क्षेत्र सामझा जाता रहा है।
हाँलाकि "झार" शब्द झारखण्ड़ क्षेत्र में बोली जाने वाली किसी भी जनजातीय भाषा या बोली का शब्द नहीं है, न ही किसी उन्नत भाषा हिन्दी या बंगला का शब्द है। "झार" शब्द का अपभ्रंश है। "झाड़" शब्द ही सही लगता है। "झाड़" का ही अर्थ झाड़ी जंगल होता है। "खण्ड़" का अर्थ तो क्षेत्र होता है। वस्तुतः "झारखण्ड़" शब्द "झारखण्ड़" था जो "कुड़माली" भाषा का शब्द प्रतीत होता है। "ड़" की जगह "र" लिखा जाने लगा, बोला जाने लगा। "कुड़माली भाषा" झारखण्ड़ क्षेत्र के बहुसंख्यक जनजाति "कुड़मी" की भाषा है।
पुरातन काल में छोटानागपुर पठार में अवस्थित क्षेत्र को ही झारखण्ड़ कहा जाता रहा था। ब्रिटिश शासन काल में आने से पहले इस क्षेत्र को "खुखरा" शब्द से भी संबोधित किया जाता था। सन् 1780 में झारखण्ड़ को "रामगढ़ पहाड़ी क्षेत्र" नाम से पुकारा गया और सन् 1833 में इसका नामकरण अंग्रेजी शासन के माध्यम से "दक्षिण पश्चिम सीमांत एजेन्सी" यानि साऊथ-वेस्ट फ्रंटियर एजेन्सी रहा। फिर इसे छोटानागपुर प्रमंड़ल का नाम दिया गया।
वस्तुतः झारखण्ड़ का नाम "अकबरनामा" में भी मिलता है तथा चैतन्य महाप्रभु ने भी इस क्षेत्र को जिसका हमने शुरु में ही जिक्र किया है यानि बंगाल, बिहार, उड़ीसा मध्य प्रदेश के सीमावर्त्ती क्षेत्र को झारखण्ड़ क्षेत्र कहा गया है।
वास्तव में छोटानागपुर पठार की भूमि 1912 ईस्वी से पहले बंगाल की प्रशासनिक सीमा के अन्दर थी। 1912 में बिहार एवं बंगाल दो प्रदेश बनाए गये, बंगाल से बिहार अलग करके। छोटानागपुर पठार के कुछ हिस्से बंगाल बिहार अलग करके। छोटानागपुर पठार के कुछ हिस्से बंगाल में ही रह गये। फिर 1936 ईस्वी मे बिहार से उड़ीसा को अलग किया गया। इस विभाजन के समय भी छोटानागपुर पठार का कुछ भाग उड़ीसा में शामिल कर लिया गया था। बिहार से उड़ीसा में शामिल कर लिया गया था। बिहार में छोटानागपुर कमिशनरी, संथाल परगना कमिशनरी ही झारखण्ड़ क्षेत्र के रुप में बच गये। बिहार, बंगाल, उड़ीसा तथा मध्यप्रदेश के राज्यों के गठन के फलस्वरुप वृहत् झारखण्ड़ प्रदेश चार टुकड़े में बँट गया।
झारखण्ड़ अलग राज्य का आन्दोलन इसी झारखण्ड़ क्षेत्र को इन प्रदेशों से अलग करके एक अलग राज्य का दर्जा दिलाने का आन्दोलन रहा है। इस वृहत झारखण्ड़ क्षेत्र के दायरे में बिहार के अठारह जिले धनबाद, गिरिडीह, हजारीबाग, चतरा, गढ़वा, पलामू, कोडरमा, दुमका, देवघर, साहिबगमज, पाकुड़, गोड्डा पश्चिम सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, राँची, लोहरदग्गा, गुमला तथा उड़ीसा के सुन्दरगढ़, म्यूरभंज, क्योंझर तथा बंगाल के पुरुलिया, बाकुँड़ा, मेदनीपुर तथा मध्यप्रदेश के सरगूँजा, रायगढ़, सम्बलपुर जिले है।
क्षेत्रफल के हिसाब से वृहत झारखण्ड़ का क्षेत्रफल 3.75 लाख वर्गकिलोमीटर होगा तथा वृहत झारखण्ड़ की जनसंख्या 1981 की जनगणना के हिसाब से तीन करोड़ थी। सिर्फ बिहार में अवस्थित झारखण्ड़ का क्षेत्रफल 1.90 लाख वर्गकिलोमीटर है एवं 1981 की जनगणना के हिसाब से जनसंख्या 1.80 करोड़ थी। दौ हजार एक की जनगणना के हिसाब से वर्त्तमान झारखण्ड़ प्रदेश की आबादी पौने तीन करोड़ है।
Tuesday, March 16, 2010
परिवर्त्तन
परिवर्त्तन
प्रस्तावना ब्रह्मांड की यह व्यवस्था बड़ी व्यापक एवं विचित्र है। कहते हैं कि ब्रह्माड़ में कई सौर-मंडल है। कई सूर्य है।
हॉल ही में वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है कि इस ब्रह्माड़ में, अंतरिक्ष में कई ऐसे शून्य हैं जिसके अन्दर अगर कोई ग्रह, तारे आदि चले जाएँ तो क्षण में उसके टुकड़े-टुकड़े हो जायें। एक ऐसे भी शून्य यानि “ब्लैक हॉल” का पता चला है जो हमारे सूर्य से भी पन्द्रह-सोलह अरब गुणा आकार में बड़ा है। सूर्य भी अगर उसमें घुस जाए तो वह भी धूल-कणों में परिवर्तित हो जाए।
पर बड़े आश्चर्य की बात है कि पूरी व्यवस्था, सौर मंड़लों की व्यवस्था, सूर्य, चॉद, तारे ग्रह सभी एक दूसरे के सहारे निर्भर है। सभी एक दूसरे के आकर्षण एवं विकर्षण के चलते एक दूसरे को बॉध कर एक निश्चित दूरी बनाकर, एक संतुलन कायम रखते हुए अपने-अपने रास्ते अपनी गति से चलते हैं।
इस व्यवस्था में अगर अचानक परिवर्त्तन आ जाए, तो बड़े विनाश की संभावना है। तो प्रश्न उठता है कि क्या इस व्यवस्था में परिवर्त्तन नहीं होगा ? परिवर्त्तन तो हो रहा है, पर उसमें भी एक संतुलन है, संतुलन कायम रखते हुए हो रहा है। परिवर्त्तन भी व्यवस्था का अंग है। रास्ते बदल रहे हैं, दूरियाँ घट रही है, दूरियाँ बढ़ रही है।
पृथ्वी पर भी परिवर्त्तन हुए है। इसके बनने के बाद से जीवों की उत्पत्ति से लेकर मानव के आर्विभाव से लेकर उसके पूरे सफर में परिवर्त्तन की ही कहानी है।
मनुष्यों ने भी अपनी-अपनी व्यवस्था बनाई है। साम्राज्यों की व्यवस्था, सामंतवादी युगों की व्यवस्था, आदि-आदि। रहन-सहन की व्यवस्था, धर्म, संस्कृति, भाषा आदि सभी तो एक प्रकार की व्यवस्था है।
तो क्या इन व्यवस्थाओं में परिवर्त्तन नहीं होता। होता है और होता हुआ आया भी है। व्यवस्थाओं में टकराव भी हुए हैं। व्यवस्थाओं में टकराव के चलते विनाशकारी-परिणाम भी सामने आते रहे हैं। कई व्यवस्थाएँ खत्म हो गई है। कई सभ्यताएँ-संस्कृतियाँ लूप्त हो चुकि है। यहाँ तक कि कई प्राणी भी लुप्त हो चुकें है।
व्यवस्था में अगर संतुलन बनाए रखते हुए परिवर्त्तन होता है तो वह सुखद एवं लाभकारी हो सकता है, पर अगर टकराव हो तो विनाशकारी परिणाम होते हैं यानि परिवर्त्तन दुखदायी एवं अहितकर होते हैं।
“परिवर्त्तन” झारखण्ड़ प्रदेश की छोटी व्यवस्था, इसकी संस्कृति-सभ्यता, इसके लोगों की सोच के साथ अन्य बड़ी व्यवस्थाओं के साथ टकराव की कहानी है। जाहिर है कि टकराव होगा तो परिणाम सुखद नहीं हो सकता।
Friday, March 5, 2010
Personal Details
Name : Raj Kishore Mahato
Date Of Birth : 23/9/1946
Father’s Name : Binode Bihari Mahato
Advocate, Ex-M.P, Ex-M.L.A.
Ø Founder President for ten
years from beginning of JMM
party.
Ø Founder of more than 35
educational Institutions
including Primary School, Middle
School, High School, Degree-
Colleges and Law College
Dhanbad.
Ø Founder of Shivajee Samaj
in 1967, a social organisation of
Kurmi-Mahato community in
Jharkhand.
Educational Qualification: 1961-63 Ø St. Xavier’s College,
Ranchi-Intermediate.
1963-68 Ø A.I.S.M., B.Sc.
Mining Engineering from
Indian School of Mines.
1975 Ø L.L.B. (Law Degree)
Ranchi.
Profession : 1968-1971 Ø Worked in
Collieries of N.C.D.C and
Birds Company.
1971 Ø Started own Business
of Manufacture Mosaic
Tiles and Civil Contractes.
1978 Ø Joined Patna High
Court Ranchi Bench.
1989 Ø Became A.P.P.( Asst.
Public Persecutor)
1990-1991 Ø Two year Govt.
Pleader in High Court
Empanelled as High Court Judge.
10.05.1992 Ø Brought Back in
A ctive politics again by
Supports of J.M.M. and
became M.P. from Giridih Lok-Sabha in bye – election where father Binode Bihari Mahato was seating member.
At Present Ø Enrolled Lawyer of Supreme Court of India since 1994 and Jharkhnd High Court, Bokaro & Dhanbad Dist. Courts.
Since 1994 – Life member of Indian Council of arbitration.
Political Achievement : 1969–Active member of “Shivajee
Samaj”.
1973 – One of the Founder members of JMM Party. Framer of the Party’s constition including the work of giving name and symbol of the party.
1978 – Formed the Party JMM at Ranchi Town after Joining High Court and propagaked it through out south Chhotanagpur. Sri Shailendra Mahato, Ex-M.P. Joined JMM in 1978, Arjun Ram Mahato Ex-M.L.A. in 1979, Sadhanu Bhagat in 1978 Saheed Nirmal Mahato, Sudhir Mahato Krishna Mardi Ex-M.P. West Shimbhum, Bhai Halen Kujur Ex-M.L.Etc. of South Chhotanagpur joined after 1978.
10.05.1992 : M.P from Giridih Lok-Sabha in Bye-election in place of Father Binode Bihari Mahato.
09.08.1992 : Separated from Shibu Soren and formed JMM (Mardi) fraction and became General Secretary, with Krishna Mardi as its President with other Nine M.L.A’s of JMM, on issue of support to congress. Oppossed support to Congress and supported and saved the Janta Dal Govt. of Bihar headed by Sri Laloo Prasad.
Oppossed the policy of formation of Jharkhand Area Autonomous Council by Congress and Shibu Soren and Sri Laloo Prasad in stead of a separate Jharkhand state.
05.05.1993 – Dharana at Rajghat Delhi by central committee JMM (Mardi)
07.05.1993 : Called upon by the Honourable President of India to discuss Jharkhand issue. Here also the cause of Separate state was advocated and formation of JAAC was oppossed.
03.09.1993 – Massive Ralley in Patna of JMM (Mardi). Had discussion with Honourable Governor of Bihar.
07.10.1994 Massive Ralley in Calcutta. Had discussion with Honourable Governor of West Bengal on the issue of separate Jharkhand State. Comprising of the than Ajenda 26 districts of South Bihar, West Bengal, Orissa and Madhya Pradesh.
23.02.1994 : Dharana at the main entrance of the Parliament by M.P’s. on this day Total Jharkhand area was closed on band call by JMM (Mardi).
Had many discussins with Honourable Home Minister Central Govt., but did not support JAAC.
1995 : Bihar assembly election held JMM (Mardi) fought in about 30 seats alone four seats were won, second in twelve seats.
1996 : Raj Kishore Mahato lost Giridih M.P. election.
1998 : Offered ticket of B.J.P and Samata for Giridih, did not accept as these parties had no clear stand about separate state by that time and they also had supported JAAC.
01.03.1998 : Sri Atal Bihari Bajpai jee made declearation for creation of three new states including Jharkhand.
31.10.1998 : Joined Samata Party to support B.J.P and was made National General Secretary of Samata by the than President Sri George Fernadese and became incharge of Jharkhand and West Bengal.
December 1999 : In M.P. Elections helped B.J.P candidate in Dhanbad and Giridih. Did not fight elections.
2000 – Bihar Assembly Election Nine seats were contested by Samata when Sri Raj Kishore Mahato was incharge of Jharkhand Area and won five seats, remain second in two, Samata became a powerful Party in jharkhand having five Minister in the new State.
2001 – Till 2003 : Chairman Passenger’s Services Committee, Rly. Board under Nitish Kumar Rly. Minister .
2003 – Rajya Sabh election was fought from Jharkhand as Samata Party Candidate, but lost.
December 2004 – Joined B.J.P.
February 2005 – M.L.A from Sindri (B.J.P).
Experience : 1. Member of Coal Consultative
Committee Parliament.
2. Member of Non-
Conventional Energy-
Parliament.
3. Chairman-Pollution
Control Committee –
Jharkhand Vidhan Sabha.
4. Chairman-Ethics
Committee Jharkhand
Vidhan Sabha.
5. Chairman Passenger
Service Committee Rly.
Board.
Other Political
Activities : 1. Founder President of “Jharkhnd Colliery Shramik Union” since 1993, A registered Trade Union working in the Coal fields of Jharkhand, of which at present General Secretary is Sri Jaleshwar Mahato (Ex-Minister M.L.A. Baghmara Secretary Yogeshwar Mahato (M.L.A., B.J.P Bermo), Secretary Khiru Mahato ( M.L.A. Mandu) and Ex-Secretary Jagarnath Mahato (M.L.A. Dumri), Ex-Member Mathura Prasad Mahato (M.L.A. Tundi) Ex-Secretary Sri Tek Lal Mahato, M.P. Giridih Ex-Office bearer, Arjun Ram Mahato (Ex - M.L.A. Ramgarh) and many other leaders now in different Political Parties. This Trade Union is the back -bone of the Political strength of aforesaid leaders in coal fields.
Sri Mahato is Known as A leader against Displacement in Jharkhand.
Adibasi Kurmi Manch :
Raj Kishore mahato, always
raised the issue of re-inclusion of Kurmi mahato community of the jharkhand region. after creation of newstate of jharkhand, he again started this issue and in the year 2004, december, the b.j.p. govt. of jharkhand state under the leadership of sri arjun munda has sent this proposal to central govt., just before the day, sri mahato joined b.j.p.
the community have 24-25 percent population in the state and sri raj kishore mahato has included this issue in the party constitution of j.m.m. in 1973 and sri mahato is undoubttedly the most popular Leader amongst kurmi. mahato community.
other educational and
social activities : Managing a large number of
educational institutions, either
as President or Secretary.
secretary of dhanbad law
college since 1992 till date.
writer of : Øjharkhand andolan ke
massiha “binode bihari mahato”
“jharkhand andolan–chhetriya awn samajik aayam”.
Ødomicile niti in jharkhand.
Øsahi jharkhand.
Ø “Parivartan” (A Report on Jharkhand is in a press)
some articles and books are ready for printing.
Sunday, December 20, 2009
भारत में सांप्रदायिकता
The word “Commune” is the origin for the word community. Caste system in India strengthened the feeling of a community being separate from other communities. The boarder line between caste, races, and creeds became clearer with passage of time for some reason or the other.The existence of community was accepted by Indian society and this caste system and its evils became even traditional. Simultaneously a struggle was also started and continued by some great Mahatmas & social reformers against the evils of caste system.Than came up the era of invention of religions Sanatan Dharma, Islam, Christianity and other religions come in to existence gradually and another types of communities were created.Before Independence of India from British Rule, the Hindus, Muslims, Sikh, Christians all fought for the independence of India irrespective of caste creed, race and religion, all participated in the strangle.
But, at the time of independence the Muslim leader pleaded for a separate Pakistan, Sikhs leader pleaded for a separate Khalistan. India was divide in Pakistan and Hindustan in 1947. although the people in general never anticipated this change.Many of the Muslim families went to Pakistan and many of the Hindu families went to Hindustan. It is surprising that most Indians did not leave Pakistan and most Muslim did not leave Hindustan. Even after sixty one years of separation, these people do not want to leave their homes, hearths, i.e. village, towns where they had been living since the time of their fore fathers. It is still unlikable for than to part with the soil where they had born and brought up in both the new territories.
The caste system in India, became the foundation of caste-politics in India. The concept of communism its principal theory of class struggle could not be successful in India, became of this caste system which has divided Indian society in many divisions, which subsequently has classified the society in to oppressed class i.e. Dalit class and Higher caste or Higher class concentration of many and power centralized in the hands of Higher caste people.The caste system played a vital role in Indian Politics in so much so that many states in India has political parties at top Which germinated from caste politics and are still continuing.
The constitution of India although speaks of equality in all sphere of life and says that no body will be discriminated on the basis of caste creed, race and religion, Our constitution provides for and gives permission to divide the society on the basis of the caste, creed, race & religion for certain purpose i.e. for their development. Unfortunately, no permission has been given to divide the society on the basis of economic criteria.During these sixty one years the so called leader of the oppressed communities have compelled their communities to develop hatred towards so call effluent people i.e. Higher communities and the leaders of Minority community ( Muslims & Christian etc.) against the so called major community Instead of love and affection with each other.A feeling of fear and threat and uncertainty has also grown up in the so called forward classes of the county and majority community.Now, as I have said that the communal hatred based on religion has become more intense and harmful, then caste based hatred. Now a days so many organizations have sprung up which are blaming each other to be religiously communal.
Now a days the caste line politics and propagations or feeling of separation on caste line is not being called as communal, but the word “Communal” has became synonymous with religion Communalism.When leaders like Laloo Prasad makes formula like “Mai” and “Bhura Bal & of karo” he is not defamed as communal. When leader like Mayabati speaks of Dalits only and abuses other higher class people as “Trazu, Talwar & Tilak”, she is not leveled as communal. It recently the Chief Minister of Jharkhand Shibu Soren says on caste line that Manjhis & Mains” combine, they will rule Jharkhand, Shri Soren is not blamed for being communal.Surprising is that the B.J.P. and R.S.S. are always being blamed and leveled and defamed as being communal if they speak of Rastriyata or Hindus Rastriyata without going in to caste line or religion line of. After all what is a country ? A territorial division in which certain people live and reside. What is “Rastriyata” then it is the feeling of love to the soil, the spirit of the country.
n Surprisingly enough the formation of boundary lines of a Pakistan & Hindustan has been on the basis of this Rastiyata. Who are “Hindus”. Every body knows that the people living around Indus River had been called Hindus. This region extends to far off places and covers large area.Then if R.S.S. / B.J.P. says that every body borne in this region is Hindu irrespective of caste, creed, race and religion, where is the wrong. Why persons are afraid to sing the “Vandemataram” Creating love and affection to the soil i.e. country i.e. Matribhumi. The “Hindutawa” is the Rastriyata of Hindustan therefore .R.S.S has been saying so since before Independence of India since 1928 till date.The Honorable supreme court of India in its decising dated 11/12/1995 has accepted that “Hindutwas” is the “Rastriyata” of Hindustan.
Monday, October 26, 2009
मूल वासियों का शोषण नहीं रूका तो झारखंड में स्थिति विस्फोटक हो सकती है
दुनिया भर के महत्वपूर्ण खनिज यहां पाये जाते हैं। विभिन्न प्रकार के कल-कारखाने को स्थापित करने के अलावा बड़े पैमाने पर बिजली पैदा करने की क्षमता भी है।झारखंड पर विस्तार से नजर डालने से पहले इसके इतिहास पर भी एक नजर डालना लाजमी होगा। आजादी से पहले पूरे झारखंड इलाके के मूल वासी को आदिवासी माना जाता था। जैसा कि सूचि में दर्ज है। उस समय के हिसाब से झारखंड का जो इलाका था उसमें बिहार के अलावा पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा भी शामिल था।
आजादी से पहले जब इस इलाके का सर्वे किया जा रहा था तब यहां कई समुदायों को मूल आदिवासी माना गया। इसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा एच एच रिजले का। इनके सर्वे का नोटिफिकेशन प्रकाशित किया, ब्रिटिश सरकार ने 1913 में। इसके बाद मानव विज्ञान के ज्ञाता डब्ल्यू.जी. लेसी ने एक सर्वे किया जिसकी रिपोर्ट प्रकाशित की गई 1931 में। इस रिपोर्ट के अनुसार तेरह समुदाय को यहां का मूल वासी घोषित किया गया जो यहीं के हैं। जिनका यहां के जमीन पर मूल अधिकार है।इन्ही समुदायों में से एक कुडमी महतो, जिन्हें आजकल कुर्मी- महतो कहा जाता है, उनकी जनसंख्या अकेले पूरे राज्य की संख्या के लगभग 25% है। 2001 की जनगणना के अनुसार बाकि आदिवासी समुदाय जो 31 प्रजातियों में बंटा हुआ है उनकी संख्या 26% है। बहरहाल, आजादी के बाद कुर्मी महतो का नाम आदिवासी सूचि से हटाकर पिछड़े वर्ग की सूचि में डाल में दिया। ऐसा कुछ और समुदाय के साथ भी हुआ वो भी बिना किसी नोटिफिकेशन के और बिना कारण के।झारखंड के मूल वासियों की जीवन मुलत: खेती और जंगल पर निर्भर है। यहां के मूल वासी आज भी पांरिपरिक तरीके से जीवन यापन करते हैं।
यहां की मुख्य फसल धान है। यहां के झरने-नदियां कल कारखानो के कारण प्रदूषित हो चुकी है। राज्य की जनसंख्या को मुख्यत: दो भागों में बांटा जा सकता है - मूलवासी और बाहर से आकर बसे हुए लोग। मूल वासी को विभाजित किया जा सकता है आदिवासी समुदाय(26 प्रतिशत), दलित समुदाय(10 प्रतिशत), पिछडा वर्ग और सामान्य वर्ग में। बाहर से आकर बसे हुए लोगों की संख्या मुश्किल से लगभग 20 प्रतिशत है। लेकिन केन्द्र और राज्य सरकार की नौकरियों के अलावा व्यापार और हर प्रकार की आर्थिक गतिविधियों पर बाहर से आये हुए लोगों का हीं कब्जा है। यहां के जो मूल वासी है वे पूरी तरह शोषित हैं। उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है।झारखंड आंदोलन -बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि झारखंड आंदोलन की शुरूवात बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में शुरू हुई। लेकिन इसका दायरा बहुत ही सीमित था। वो भी आदिवासी समुदाय के बीच। बाद में इसके दायरे को बढाया गया।
यह आंदोलन सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक और राजनीति शोषण के खिलाफ शुरू हुई। बाहर से आकर बसने वाले लोगों ने यहां के मूल वासियों का जबरदस्त शोषण किया।आजादी के बाद केन्द्र सरकार ने झारखंड अलग राज्य की मांग को खारीज कर दिया। क्योंकि पुनर्गठन राज्य आयोग के सामने अलग राज्य की मांग को लेकर एक गलत रिपोर्ट रखी गई था। बाद में उस समय के झारखंड नेता जयपाल सिंह कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये 1963 में। 1956 से लेकर 1970 तक झारखंड आंदोलन छिन्न भिन्न हो गया।इस बीच 1968 में बिनोद बिहारी के नेतृत्व में “ शिवाज समाज” का गठन हुआ।
बिहारी महतो एक वकील होने के साथ साथ शिक्षाविद् और समाज सेवक भी थे। यह संगठन कुर्मी महतो समाज का एक सामाजिक संस्था था झारखंड इलाके में। इसके बाद वहां जो समाज शोषित था उनलोगों ने भी विनोद बिहारी महतो जी से प्रेरणा लेते हुए सामाजिक संगठन बनाये। इसी क्रम में शिबू सोरेन ने भी संथाल समाज को उपर लाने की मकसद से ‘सोनोत संथाल समाज’ का गठन किया।आपातकाल लागू होने से कुछ साल पहले 1973 में शिवाजी समाज और सोनोत संथाल को मिलाकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया गया बिनोद बिहारी के नेतृत्व में। श्री महतो इसके संस्थापक अध्यक्ष बने और शिबू सोरेन महासचिव। पार्टी का नाम झारखंड मुक्तो मोर्चा होगा यह सुझाव मैंने हीं दिया था। मैं बिनोद बिहारी महतो का ज्येष्ठ पुत्र हूं।झारखंड आंदोलन को नया जीवन दिया राजीव गांधी ने -यह सच्चाई है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने झारखंड आंदोलन को एक नया जीवन दे दिया 1989 में। जब उन्होंने अलग राज्य के मसले पर एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया –‘ The Committee on Jharkhand Matters’। इस समिति ने मई 1990 में एक रिपोर्ट केन्द्रीय गृह मंत्रालय के सामने रखी जो झारखंड आंदोलन के इतिहास में टर्निंग पॉइन्ट सिद्ध हुआ।दुर्भाग्यवश राजीव गांधी जी की हत्या हो गई मई 1991 में। फिर नरसिंह राव जी प्रधानमंत्री बने और झारखंड अलग राज्य मामले में बिनोद बिहारी महतो(सांसद गिरिडीह) के साथ बातचीत की। झामुमो के सभी सांसद भी थे। लेकिन राव साहब ने बातचीत के दौरान केन्द्रीय सरकार को समर्थन देने की बात की।
इस पर बिनोद बाबू तैयार हुए एक शर्त के साथ वो था कि अगर कांग्रेस पार्टी राजी होती है कि वो अलग झारखंड राज्य देने को तैयार है तब।बिनोद बाबू के निधन से आंदोलन को झटका -दुर्भाग्यवश मेरे पिताजी बिनोद बिहारी महतो जी का निधन( 18-12-1991) हो गया। यह झारखंड आंदोलन के लिए एक जोरदार झटका था। आंदोलन को भारी धक्का लगा। इसके बाद मै राजनीति में सक्रिय रूप से आया। पिताजी के निधन से खाली गिरिडीह लोक सभा सीट के लिए हुए उपचुनाव(11-05-1992) में मैं विजयी रहा।शिबू सोरेन झामुमो के अध्यक्ष बने। और पार्टी को एक तानाशाह के रूप में चलाने लगे। इतना ही उन्होंने अलग वृहद झारखंड राज्य की मांग को भी छोड़ दिया। और सिर्फ बिहार के हिस्से वाले झारखंड इलाके में स्वतंत्र परिषद के लिए राजी हो गये।
परिषद और बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को समर्थन देने के मुद्दे पर झामुमो दो भागों में विभाजित हो गई। मैं कांग्रेस के खिलाफ लालू यादव जी को समर्थन दिया वहीं शिबू सोरेन ने लालू की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। शिबू सोरेन के साथ चार सांसद और 9 विधायक थे। दूसरी ओर झामुमो मार्डी के साथ दो सांसद और 9 विधायक रहे। कृष्णा मार्डी झामुमो(मार्डी) के अध्यक्ष बने और मैं महासचिव।झामुमो(मार्डी) के जबरदस्त विरोध और आंदोलन के बावजूद 24 दिसंबर 1994 को आदिवासी परिषद का गठन किया गया। इसे लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के अलावा भाजपा, वामपंथी और अन्य दलों का समर्थन प्राप्त था। प्रावधान ऐसा किया गया कि आदिवासी परिषद का अध्यक्ष आदिवासी हीं होगा। कुर्मी-महतो समुदाय को पूरी तरह नकार दिया गया जबकि झारखंड आंदोलन के लिए महतो समुदाय के अनेको लोग शहीद हुए और कुर्बानियां दी।