Sunday, March 28, 2010

अध्याय - 1

झारखण्ड़ क्षेत्र का प्रारम्भिक प्रशासन
झारखण्ड़ क्षेत्र का प्रशासन अपने आप में अनूठा था। अंग्रेजी राज से पूर्व छोटानागपूर पठार अनेक बड़े सामन्तो के कब्जे में था। संथाल परगना का पहाड़ियाँ जनजाति के कब्जे में था। इसके मैदानी क्षेत्र और घाटी में घटवार या घटवाल तथा जमींदारों का नियंत्रण था। मुगल-सम्राट के साथ साधारण निष्ठा थी।
यहाँ पर मुसलमान शासकों ने पूर्ण रूपेण कब्जा नहीं किया था। झारखण्ड़ के निवासी आदिम जनजाति, प्रिमिटिव ट्राइव के लोग थे, जिनका अपना कानून था। अपने रस्मो-रिवाज थे। अपना रीति-रिवाज था। सम्पति के उत्तराधिकार के एवं हस्तांतरण के अपने नियम थे। वस्तुतः यहाँ के उस समय के निवासी हिन्दुत्व एवं ईस्लाम दोनों से अप्रभावित थे। वे प्रकृति पूजक थे।
मुगलकाल के बाद सबसे ज्यादा प्रभाव ब्रिटिस शासन का इस क्षेत्र पर पड़ा। 1765 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कम्पनी को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा की दिवानी स्वीकृति की गई थी। और इसी के साथ इस क्षेत्र में ब्रिटिश प्रशासन का अध्याय शुरू हुआ। दीवानी प्राप्त करने और सेवाएँ प्राप्त करने का अधिकार मिल गया। इस अधिकार का उपयोग कम्पनी ने अनुशासनहीन सामंतो, जमींदारो, मुखीयों के खिलाफ किया जो राजस्व या कर देने में अवहेलना या विलम्ब करते थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी इन लोगों के वापसी झगड़े में हस्तक्षेप करती थी। इस अधिकार के तहत जनजातियों के विद्रोह को कुचलने के लिए सेना का उपयोग कम्पनी किया करती थी । 1776 में स्थाई बन्दोबस्त लागू करने के साथ कम्पनी का दामन चक्र पक्का हो गया।
1788 में ईस्ट इंडिया कम्पनी की शक्ति तम्राट को हस्तांतरित हो गई। 1765 के बाद से करीब एक सौ वर्षो से भी अधिक समय तक इन क्षेत्रो में जनजातिय विद्रोह एवं आन्दोलन का समय रहा। ब्रिटिश प्रशासनिक प्रत्युत्तर पर ये विद्रोह हुए। इनमें महत्वपूर्ण है मलेर विद्रोह (1772), तिलका माँझी विद्रोह (1784), तमाड़ विद्रोह (1798), कोल इन्सरक्सन (1820), हो विद्रोह (1832) ग्रेट कोल विद्रोह आदि।
सम्राट के पास शक्ति आ जाने के बाद जनजातीय क्षेत्र के प्रशासन में अनेक परिणामी परिवर्त्तन किए गये थे।
मीलिटरी एक्शन के जरीए जनजातीय विद्रोहों एवं अन्य आन्दोलन को कुचलने का व्यापक इन्तजाम किया गया था। तीन तरफा कार्यवाही की गई, ग्राउंड प्राशासन को मजबूत करना, जनजातीयों की शिकायतों को दूर करके उन्हे शांत करना जो उस समय मुख्यतया ठेकेदारों, सामन्तो, जागीरदारों, महाजनों, व्यापारियों आदि के खिलाफ हुआ करती थी।
अधिकांश शिकायतों का केन्द्र-बिन्दु जमीन और वनों पर उनका अधिकार एवं कभी-कभी उनकी महिलाओं का शोषण होता था।
झारखण्ड क्षेत्र एक जनजातीय क्षेत्र रहा था। अधिकांश जनसंख्या जनजाति थी। ब्रिटिश प्रशासन ने अठारहवीं सदी के अन्त से ही संवैधानिक प्रक्रिया प्रारम्भ कर दिया था। जिसके अर्न्तगत प्रशासन को भारतीयों को सहयोजित करने और धीरे-धीरे उन्हे उत्तरदायित्व सौपना था। फिर भी झारखण्ड़ जैसे जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन इस प्रक्रिया से अछूता रह गया था।
ब्रिटिश शासन ने भारतवर्ष में अपनी सत्ता चलाने के लिए एवं अपने कानूनों को लागू करने के लिए सर्वेक्षण के काम किए। जमीन का सर्वे तथा जातीय सर्वे भी किया। भारतवर्ष में निवास करने वाली जातियों का वर्गीकरण किया एवं भू-भाग का भी वर्गीकरण किया। ब्रिटिश शासन ने दो प्रकार के क्षेत्र पाये, एक तो भारत का मैदानी-समतल क्षेत्र तथा दूसरा पहाड़ी क्षेत्र। मैदानी लोगों के जीवन एवं दृष्टीकोणों में बहुत बड़ा अन्तर एवं विरोधावास पाया।
इस अन्तर एवं विरोधावास का कारण यह था कि पहाड़ी क्षेत्र में भारतवर्ष की जनजातियाँ वास करती थी। जिनका रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि अलग थे। ब्रिटिश सरकार का उद्देष्य विधान मंड़लो के सांविधानिक प्राधिकार को इन क्षेत्रों में न्यायिक एवं प्रशासनिक पद्धति को सरल तथा लचीली रखना सुनिश्चित करना चाहते थे।

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